अभी हाल ही में खबर पढ़ने को मिली कि 'भारत-आयरलैंड' के बीच हुए मुकाबले में सचिन को पवेलियन की राह दिखाने वाले किशोर गेंदबाज डोकरेल का सचिन के अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण के समय तक जन्म भी नहीं हुआ था. लगा मानो कोई कह रहा हो कि सचिन को आज से १९-२० साल पहले आयरलैंड से यह कहने का पूरा हक था कि-
''नामुरादों!!! मुझे आउट करने वाला अभी तक तुम्हारे देश में पैदा ही नहीं हुआ..''
उम्मीद के मुताबिक आपको ज्यादा हंसी नहीं आयी होगी.. चलिए कोई बात नहीं, आगे बढ़ते हैं. तो दोस्तों और दोस्तानियों!! होली का समय नजदीक आ रहा है और ऐसे में अगर कोई कहे कि होली और हास्य ये दोनों ऐसे ही हैं जैसे चोली-दामन, चाँद-चांदनी, काया-परछाईं, कीचड़-बदबू, लेखक-ईर्ष्या, आधुनिक संत- राजनैतिक महत्वाकांक्षा, कांग्रेस-भ्रष्टाचार, दलित-दमन, हिंदी ब्लोगिंग-विवाद, मानव-गप्पबाजी वगैरह-वगैरह, तो उसके कथन या यथार्थवादी वक्तव्य में रत्ती भर भी झूठ नहीं है (झूठ होगा कैसे नालायक!! जब वो वक्तव्य ही यथार्थवादी होगा).
कई दोस्तों के मन में ये सवाल उठ रहा होगा कि चोली-दामन और चाँद-चाँदनी जैसे पवित्र उदाहरणों से प्रारंभ हुआ ये सिलसिला अचानक बदबूदार उदाहरणों तक कैसे पहुँच गया. तो याड़ी!!! बात दरअसल ये है कि आजकल शोकेसिंग का जमाना है. आपने जितने अच्छे से शुरुआत दिखा दी उतनी जल्दी और तेज़ी से मार्केट में आपका माल बिक गया समझिये. देख ही रहे हैं कि मॉल कल्चर है, अन्दर भले ही गोबर भरा हो लेकिन पैकिंग चमकीली, भड़कीली और एकदम दुरुस्त होनी चाहिए और साथ ही गोबररूपी उत्पाद पर पर्याप्त मात्रा में इत्र या आवश्यक बेवकूफबनावीकरण सामग्री का छिड़काव हुआ होना परमावश्यक है... बाकी सब चलता है. अब उदाहरण के लिए कहेंगे तो अपनी राखी सावंत अर्ररर मेरा मतलब आप सबकी न्यायाधीश याने योरलोर्ड(मीलोर्ड नहीं) राखी सावंत को ही देख लीजिये.. तो बस इसी भावना के तहत आपके सामने पहले कुछ खूबसूरत से महकते उदाहरण पेश करने पड़े.
बात होते-होते ख़त्म होती है मानव-गप्पबाजी जैसे अटल और अविनाशी उदाहरण पर... तो महाशयों/ महाशयनियों ये मेरी व्यक्तिगत सोच है और इसे कोई चाह कर भी मेरे घुट्नापटल(अरे वही जिसे आप सब अपना मष्तिष्कपटल कहते हैं) से नहीं मिटा सकता कि 'मानव और गप्पबाजी दोनों एक दूसरे के बिना जीवित नहीं रह सकते' याकि यूं कहें कि कल को आर्कमिडीज का कोई सिद्धांत गलत सिद्ध हो सकता है किन्तु यह नियम नहीं..
बहुत संभव है कि बिन रोटी, कपडा, मकान के कोई व्यक्ति जीवन गुज़ार दे, लैला अपने मजनूँ के बिना रह जाए... लेकिन ऐसा असंभव ही जान पड़ता है कि दुनिया में कोई मानवप्राणी एक निश्चित समयावधि से अधिक देर तक गप्पबाजी में शामिल हुए बगैर जीवित रह ले. यदि वो लेखन से और उसमे भी विशेष शाखा चिठियागिरी से जुड़ा हुआ है तब तो यह सार्वभौमिक सत्य है कि गपशप के बिना वह शायद उतना भी नहीं टिक सकता जितना कि बिना अन्न और जल ग्रहण किये.
अब गप्प शुरू करने के लिए किसी ख़ास मौके, मजमून, मुकम्मल शख्सियत की जरूरत नहीं होती. कहते हैं कि 'जहां चाह वहां राह' तो एक बार आप मन में जरा सी कल्पना मात्र कीजियेगा और तुरंत ही गप्प सामग्री आपके आस-पास टहलती नज़र आयेगी. ये किसी के भी ऊपर-नीचे, आगे-पीछे हो सकती है. ये वो गैरसंवैधानिक छींटाकशी है जिस पर किसी की बपौती नहीं चलती, किसी का पेटेंट नहीं चलता. इसका आयाम आपके मोहल्ले के बल्लू-शीला, पपलू-रजिया, छोटे-मुन्नी, पप्पू-पिंकी, बंटी-बबली से लेकर राखी-मीका, रेखा-अमिताभ, डौली बिंद्रा-श्वेता तिवारी तक है.... जरूरी नहीं कोई व्यक्तिवाचक संज्ञा ही गपशप का केंद्र बिंदु बनाया जाए, इसमें समूह, स्थान, भाव किसी को भी समेटा जा सकता है या ये कहें कि इसे जितनी मर्जी चाहे विस्तारित किया जा सकता है. वैसे इसका विस्तार कहाँ से शुरू होगा कहाँ तक जाएगा इसका जवाब तो आइन्स्टाइन भी न दे सकते थे फिर आजकल के कलादानों, साइंसदानों और मेरी औकात ही क्या है.
जब भी गप्प-सेशन प्रारम्भ करना हो तो जरूरत इतनी मात्र है कि आप जिसके बारे में गप्प शुरू करना चाहते हैं उस संदर्भित व्यक्ति/ वस्तु/ घटना से वाकिफ हों.. ज्यादा ना हों तब भी चलेगा लेकिन उस दशा में आपकी कल्पनाशक्ति लाजवाब होनी चाहिए और साथ ही आपमें हाज़िरजवाबी की अद्भुत क्षमता हो तो सोने पर सुहागा है. यदि आपमें ये सभी दक्षताएं हैं तो गप्पछेड़ित विषय के बारे में एक बार देखने से लेकर उसके नाम सुनने तक की जान-पहिचान काफी है.
मेरा ये भी मानना है कि गप्प-कण प्रत्येक व्यक्ति की रग-रग में व्याप्त हैं और रुधिर कणों से चिपके हुए निरंतर हमारी देह में प्रवाहित होते रहते हैं. जहां भी इन्हें प्रदर्शन का जरा सा भी मौका मिलता है ये पृथ्वीराज चौहान के शब्दभेदी अचूक वाणों की तरह 'मत चूको चौहान' के आह्वाहन पर खरे सिद्ध होते हैं, अब इन्हें प्रदर्शन के लिए किसी ओलम्पिक पदक या विश्वकप का लालच देने की आवश्यकता तो है नहीं. गप्प में कही गयी बातें यदि यारों-दोस्तों या हल्की सी जलन रखने वाले हमनवाज़ों, हमनिवालों, हमप्यालों, हमदर्दों, हममौजों के बारे में कही जाए तो हास्य-व्यंग्य का अवतार मानी जा सकती हैं और दुश्मनों के बारे में कही जाने पर यही अवतार कटाक्ष या पलटवार का रूप धारण कर लेते हैं.
गप्पबाजी का कार्यक्षेत्र भी इतना व्यापक है कि एक तरफ जहाँ यह धर्म से लेकर कर्म तक में दखल रखती है, वहीं इतिहास से लेकर भविष्य की योजनाओं, राजनैतिक परिचर्चाओं, वादों, यादों आदि तक में समाहित रहती है. गणित, विज्ञान, अर्थशास्त्र, कला, भूगोल, भाषा.. ये सभी चाहे अलग-अलग विषय हों लेकिन गपशप एक ऐसा अद्भुत, अचूक मंत्र है जो इस सब को बाँध कर एक ही मंच पर प्रस्तुत कर सकता है. कहने को लोग सदियों से गप्प को उपेक्षित वस्तु बनाए हुए हैं और जानवरों की तरह इसके लिए 'हांकना' शब्द का प्रयोग करते आ रहे हैं लेकिन वस्तुतः यह गप्प ही है जो इंसान को हांकने में सक्षम है, ना कि इंसान गप्प को हांकने में. किन्तु फिर भी इस महाशक्ति को प्रारम्भ करने के लिए कोई चालक-परिचालक तो चाहिए ही ना.. जैसे उदाहरण के तौर पर भारत में मौजूदा सरकार दो कार्यकालों से विकास की गप्पें हाँक-हाँक कर जनता को हँका रही है और अगले कार्यकाल के लिए अपने जन्मजात प्रधानमंत्री के लिए लालकालीन तैयार कर रही है.
दरअसल ये गप्प-शास्त्र का उद्भव कहाँ से हुआ और कैसे हुआ ये अभी तक अज्ञात है, यह अजन्मे हरि की तरह ही है, क्या पता इसकी उपस्थिति ब्रह्माण्ड में समय से पहले से ही हो... इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि डायनासौरों की विलुप्ति का एक बड़ा कारण उनका गप्पबाज़ न होना रहा होगा. इसलिए हे ब्लॉगमित्रों अपने अस्तित्व को कायम रखने हेतु इस अलौकिक गुण को अपने जीवन में उतारिये और गप्पकला को नित नए आयाम दीजिये, उसे संवर्द्धित, विस्तारित करने में अपना योगदान दीजिये.
(विशेष: गप्पकला से एलर्जी महसूस करने वाले कृपया इस वर्णित प्रसंग को होली की ठिठोली की तरह देखें अन्यथा इससे उत्पन्न होने वाले मानसिक दुष्प्रभावों के लिए अभागा लेखक उत्तरदायी नहीं होगा... ;) )
दीपक मशाल
@मेरा ये भी मानना है कि गप्प-कण प्रत्येक व्यक्ति की रग-रग में व्याप्त हैं और रुधिर कणों से चिपके हुए निरंतर हमारी देह में प्रवाहित होते रहते हैं.
ReplyDeleteबढिया शोध किया है दीपक भाई
@दरअसल ये गप्प-शास्त्र का उद्भव कहाँ से हुआ और कैसे हुआ ये अभी तक अज्ञात है।
ReplyDeleteइस विषय पर शोध करके एलियन ही रिपोर्ट दे सकते हैं।
वाह वाह.... गप्प शास्त्र का एक और अध्याय :)
ReplyDeletegup maro gup, yaha waha gup, gup hi gup...gup hi gup..
ReplyDeleteBahut badhiya.
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पैरों तले जमीन खिसक जाए!
क्या इससे मर्दानगी कम हो जाती है ?
वाह उस्ताद वाह....ई सब सुन के हमनी के भी बड़ मज्जा आया....एही तरह खावत-पीवत-खेलत और लिखत रहन तुहिन सब....हाँ.....हमिन कर आशीर्वचन तुहिन कर संग रहिन.....आउर होलिल कर मुबारकबाद तुहिन सब के....
ReplyDeleteवाह क्या गप्प बाजी है ..मजेदार.
ReplyDeleteहोली रंगों के इस त्यौहार की हार्दिक शुभकामनाये।
ReplyDeletejai baba banaras..............
जय हो गप्पबाजों की
ReplyDeletenice
ReplyDeleteविजयी विश्व तिरंगा प्यारा
ReplyDeleteझंडा ऊँचा रहे हमारा ..
आप सभी मिलकर यह स्तुत्य व्रत ले की भारत का नाम पूरे विश्व में मिलकर ऊँचा करेंगे. जब ११ खिलाडी मिलकर देश का गौरव बढ़ा सकते है तो हम करोडो क्यों नहीं. आखिर हम लोग भी तो अपने-अपने क्षेत्र के खिलाडी ही है. भारत माता की जय....
"भारतीय ब्लॉग लेखक मंच" आप सभी के साथ मिलकर इस खुशियों को बांटता है. आप सभी को बहुत बहुत बधाई.
एक चोरी के मामले की सूचना :- दीप्ति नवाल जैसी उम्दा अदाकारा और रचनाकार की अनेको कविताएं कुछ बेहया और बेशर्म लोगों ने खुले आम चोरी की हैं। इनमे एक महाकवि चोर शिरोमणी हैं शेखर सुमन । दीप्ति नवाल की यह कविता यहां उनके ब्लाग पर देखिये और इसी कविता को महाकवि चोर शिरोमणी शेखर सुमन ने अपनी बताते हुये वटवृक्ष ब्लाग पर हुबहू छपवाया है और बेशर्मी की हद देखिये कि वहीं पर चोर शिरोमणी शेखर सुमन ने टिप्पणी करके पाठकों और वटवृक्ष ब्लाग मालिकों का आभार माना है. इसी कविता के साथ कवि के रूप में उनका परिचय भी छपा है. इस तरह दूसरों की रचनाओं को उठाकर अपने नाम से छपवाना क्या मानसिक दिवालिये पन और दूसरों को बेवकूफ़ समझने के अलावा क्या है? सजग पाठक जानता है कि किसकी क्या औकात है और रचना कहां से मारी गई है? क्या इस महा चोर कवि की लानत मलामत ब्लाग जगत करेगा? या यूं ही वाहवाही करके और चोरीयां करवाने के लिये उत्साहित करेगा?
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को हनुमान जयंती की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteगप्प का जन्म मानव जन्म के ही साथ - हुआ था । दोनों जुड़वां ही समझो । कुछ महारथियों ने ऐसा ही कहा है ।इसके अलावा जिन्दा रहने के लिए गप्प ठोकना बहुत जरूरी है । इससे मनोरंजन जो होता है ।मन का रंजन होने से दिमाग की खिड़कियाँ ऐसी खुलती हैं कि अन्दर आक्सीजन ही आक्सीजन॥इसलिए जो गप्पी नहीं हैं वे गप्प की कला सीख लें । दीपक जी केविचारों का स्वागत है॥
ReplyDeleteसुधा भार्गव
इसे कहते हैं चोरी और ऊपर से सीना ज़ोरी...बहरहाल बेमिसाल पोस्ट..
ReplyDeletebahut hi badiya, mazaa aa gaya pad kar.. aise hi likhte rahiye hum bhi padne aate rahenge..
ReplyDeletePlease Visit My Blog for Hindi Music, Punjabi Music, English Music, Ghazals, Old Songs, and My Entertainment Blog Where u Can find things like Ghost, Paranormal, Spirits.
Thank You
phir padhaa aaj.....aj phir mazzaa aayaa.....!!!
ReplyDeleteइस शमा को जलाए रखें।
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हॉट मॉडल केली ब्रुक...
यहाँ खुदा है, वहाँ खुदा है...
दीपक मशाल जी अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई .
ReplyDeleteसही लिखा है दीपक भाई .
ReplyDeleteगप्पो के बैगेर ये दुनिया ही खत्म हो जायेंगी .. ..
बहुत अच्छा लेख... बधाई
इस ब्लॉग में कैसे मेम्बर बने .. भाई ,हम भी इसी ब्रम्हांड में रहते है न ..
आभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
this is very nice story!!i became a big fan of you..keep it up
ReplyDeleteबेहद सुन्दर आलेख ..गप्पबाजी पर बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी....
ReplyDeleteसादर !!!
बिल्कुल सही
ReplyDeleteक्या बात है
Keep the faith, my Internet friend. You are a first-class writer and deserve to be heard.
ReplyDeleteFrom Great talent
बहुत ही सटीक और भावपूर्ण रचना। धन्यवाद।
ReplyDeleteप्रभावी ढंग से अपनी बात कहने के लिए आपको हार्दिक बधाई
ReplyDeleteजय जय सुभाष !
जय गप्पाधिपति, जय गप्प शिरोमणि, जय!
ReplyDeleteगप्प बाज़ी पैदाइसी खामी है जौ ऊपर वाले ने टाइम पास के लिए बख्सी थी , मगर इंसान ने आदत बनाली .
ReplyDeleteचलो, कल के बाद परसों भी आ ही गया ...
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